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द गर्ल इन रूम 105

अध्याय 31

रघु ने तालियां बजाई, जिससे सभी लोग चौंक गए। “क्या? किसी ना किसी को तो अब केशव की मेहनत और लगन की तारीफ़ करनी चाहिए ना, रघु ने कहा

और हंस दिया।

इसमें हंसने वाली कौन-सी बात है?" सौरभ ने कहा।

'मैंने इस चूतिए को कम आंका, 'रघु ने कहा। 'नहीं, तुमने अपने आपको ज्यादा आंक लिया था. यू ऐराहोल, ' सौरभ ने कहा।

'लेकिन रघु की पिटाई करने वाले लोग कौन थे?' सफ़दर ने पूछा।

"अंकल, जो आदमी हज़ार करोड़ रुपए की कंपनी बना सकता है, क्या वो चंद गुंडों को पैसे खिलाकर की पिटाई नहीं करवा सकता? आखिरकार ये आदमी प्रेसिडेंट्स गोल्ड मेडल विनर है, ' मैंने कहा। "तो वो अपना फ़ोन जेनी को देता है, गुड नाइट बोलता है, खिड़की से बाहर निकलकर एयरपोर्ट पहुंच

खुद

जाता है, वहां से दिल्ली के लिए उड़ जाता है और चंद घंटों बाद लौट आता है, और एयर टिकट्स?" सौरभ ने

कहा।

"एयरपोर्ट पर कैश पेमेंट। किसी फोटोशॉप्ड आधार कार्ड का प्रिंटआउट इस्तेमाल करते हुए, जिस पर चेहरा तो उसका था, लेकिन किसी और का नाम लिखा था । "

"बंदा स्मार्ट है। क्यों फ़ैज़' मैंने कहा।

"क्यों रघु? तुमने उसको क्यों मारा?' फ़ैज़ ने कहा। रघु चुप रहा।

"वाऊ, इसने सचमुच बहुत ही बारीकी से प्लान बनाया था।' फ़ैज़ अपनी मुट्टियां भींचे रघु की तरफ देख रहा था।

फ़ैज़ उठ खड़ा हुआ और रघु को एक ज़ोरदार थप्पड़ रसीद कर दिया। रघु के मुंह से खून आने लगा और रघु चुपचाप बैठा रहा। उसने धीरे से अपना चश्मा उठाया। फ़ैज़ उसको मारने के मकसद से फिर आगे बढ़ा

उसका चश्मा नीचे गिर पड़ा।

,

लेकिन रघु ने उसको रोक दिया। "मुझे दर्द नहीं होगा। मैं आसानी से यह झेल सकता हूँ। याद रखना कि मैं अपनी हड्डियां तुड़वाने के लिए भी

पैसे दे चुका हूं।' रघु ने कहा।

सफ़दर उठ खड़े हुए। फिर जैसे कि कोमा से बाहर जाते हुए उन्होंने शांत आवाज़ में कहा, 'लेकिन वो तो तुमको बहुत प्यार करती थी।' रघु ने कोई जवाब नहीं दिया।

'तुमने मेरी नन्ही बिटिया को क्यों मार डाला?' सफ़दर ने वैसी ही धीमी आवाज़ में कहा, जैसे कि वे केवल

इसी सवाल का जवाब चाहते हो।

रघु ने भद्दे ढंग से खीसें निपोर दीं। क्योंकि उसने जो किया था, , उसने मुझे भीतर से मार डाला था।"

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